Saturday, May 26, 2012




 लगे यूँ जैसे कि उड़ सकती हूँ
जैसे ये महकी सी हवा पंख  
बनके जुड़ सी गयी है मुझमें कहीं 
अब तो क़दमों को थामकर, गगन 
की सैर पे जाना है, कि बहुत चल 
लिए अब, आसमान  अगला ठिकाना है .

Saturday, May 12, 2012




भाषा तो नहीं समझ  सकता 
पर आवाज़  समझता हूँ, 
शब्द तो मेरी जुबां बना नहीं 
सकती, भले ही कहना हो 
बहुत कुछ. 

कह पाता अगर तो मैं 
भी कहता, ये कि प्यार 
करता हूँ तुमसे, बहुत, 
तुम्हारी सलामती के आगे, 
मेरी जान की कीमत है बहुत 
थोड़ी सी, ये कि तुम्हारे दर्द 
में चुभन मुझे भी होती है.

कि तुम्हारा लाड़ चाहता हूँ मैं 
ज़िन्दगी है मेरी छोटी सी , 
उसी में प्यार बटोरना है,
उसी में प्यार जताना है, 
बस उम्मीद है यही, 
समझतें हो तुम वो बातें,
जो मैंने कही नहीं.

Wednesday, May 9, 2012

वो बचपन


वो साबुन के बुलबुले थे 
कि थे गोल गोल  इन्ध्र्धनुष, 
वो सावन के झूले जब छूते 
आसमान, तो उड़ लेती थी 
मैं भी चमकीले पंख लगा .
वो मुस्कानें थीं मेरा बचपन 

वो बर्फ का गोला था जैसे 
गर्मियों की दोपहर की पहचान 
बरसात के पानी में गली पार 
करती मेरी कगाज़ की नाव,
बन जाती मेरी शान.
वो पल थे मेरा बचपन .

मिटटी की गुल्लक थी मेरा 
खजाना, जब झूठ बोलने पे 
कौवे के काटने का डर लगता था ,
निराले थे वो दिन, जो मन में 
अब बसते हैं बनकर मीठी यादें.
वो नन्हे मन की ख्वाहिशें थीं  
मेरा  बचपन.
 
ढूँढती हूँ जिसकी आहटें मैं 
कभी कभी हर कहीं,
वो था मेरा बचपन .