Tuesday, April 17, 2012

सन्नाटा और हँसी



होठों के पीछे छुपी बैठी 
है मेरे मन की ख़ुशी 

लबों से छलकने को है तरसती 
मेरी हँसी, पर करूँ  क्या 

बाहर तो सन्नाटा है 
सब खुद में मगन हैं

ठहर कर सुने कोई 
किसी को वक़्त कहाँ है 

इस सन्नाटे को चीरती मेरी 
हँसी सबको शोर लगती है 

मैंने कहा खुश  हूँ तो घनी 
रात भी मुझे भोर लगती है