Monday, July 30, 2012



ये टूटकर  बिखरा फानूस नहीं,
ये तो ख्वाब हैं उस दीवानी के,
जिनको हुकूमत ने पायों तले  रौंदा.

उसका जनाज़ा उठा तो गुमनामी में,
उसकी मय्यत पे न आंसू बहे थे,
उसकी ख़ता थी तो ये कि ,

एक  गरीब को, चाँद से मुहब्बत थी,
एक कनीज़ ने, एक शहजादे  की
चाहत की थी

# मुग़ल -ए - आज़म 
http://themarvelouslife.files.wordpress.com/2010/04/my_dying_rose.jpg

हज़ार हसरतें हैं गुमनाम सी,
रोज़ हलक में दम तोड़ने वाली.
उनकी कब्रों पर, यार हम
सजदे पेश करें तो कैसे।