ये टूटकर बिखरा फानूस नहीं,
ये तो ख्वाब हैं उस दीवानी के,
जिनको हुकूमत ने पायों तले रौंदा.
उसका जनाज़ा उठा तो गुमनामी में,
उसकी मय्यत पे न आंसू बहे थे,
उसकी ख़ता थी तो ये कि ,
एक गरीब को, चाँद से मुहब्बत थी,
एक कनीज़ ने, एक शहजादे की
चाहत की थी
# मुग़ल -ए - आज़म