Sunday, June 10, 2012

तन्हाई और भीड़




भीड़ के संग  चलती हूँ,
साथी तो हर तरफ हैं,
पर फिर भी रहती  अकेली
सी हूँ ,साथ निभाती है बस
यह मेरी तन्हाई, अब तो
लगने लगा है कि तन्हाई ही
है  मेरी  सच्ची सहेली।


Saturday, June 9, 2012

ख्वाहिशें




ख्वाहिशें हैं ऐसी कि ,
चाँद हथेली पर सजा लूँ,
बहती हवा की चुनर बना
लिपट जाऊं  उसी में,
सिमट जाऊं उसी में।

फूलों से रंग चुरा के
अपने घरौंदे पे बिखेर दूँ ,
परियों जैसे पंख लगा के,
सैर करूँ मैं गगन की।

ख्वाहिशें हैं ऐसी कि,
उदास चेहरों को मुस्कानों की
सौगातें बाटूँ , सूनी सूनी
आखों में तारों से मांगकर,
चमक के खजाने भर दूँ। 

डूबती हुयी कश्तियों को
साहिलों के आगोश दूँ,
पोटली भर जादू मिले मुझे,
 तो दुनिया हसीँ बना दूँ