Friday, February 15, 2013

प्रेमोत्सव




आज वैलेंटाइन दिवस है, जिसको हमारे देश में भी प्रेम दिवस की शक्ल में पहचाना जाने लगा है। अब आपको अपने आस पास ऐसे कई लोग मिल जायेंगे जो आज के दिन या तो गुमसुम बैठे होंगे कि उनकी ज़िन्दगी में तो कोई प्रेम करने वाला/ वाली ही नहीं, या कुछ ऐसे भी होंगे जो अपने इस दुःख को एक दम्भी हँसी के पीछे छुपाये बैठे होंगे और गाते फिर रहे होंगे की हम तो अकेले हैं, सो प्रेम के साथ जो झंझट मुफ्त मिलते हैं वो हमको नहीं हैं, तो जी हम इस बात की ख़ुशी मनाएंगे। 

मैं सबसे कहना चाहती हूँ कि प्यार तो दुनिया में हर तरफ बिखरा पड़ा है, बस हम ही उसको महसूस नहीं करते। हमने अपने अन्दर के सब खिड़की दरवाज़े बंद कर रखे हैं और प्यार खटखटाता रहता है, पर हम सुनते नहीं, और उस बेचारे को हम तक पहुँचने का कोई जरिया भी नहीं मिलता। अजीब लगा पढ़कर? कह दो की नहीं, तुम फ़ालतू बात कर रही हो। पर एक बार ज़रा ये सोचकर देखो कि  जिस हवा में तुम साँस ले रहे हो, जिस रौशनी में सब कुछ देखते हो, क्या वो भगवान् का बरसाया हुआ प्यार नहीं तुमपर? ये प्रकृति हमसे इस कदर प्रेम करती है कि  हम उसको कब से दुहते आ रहे हैं, लूटते आ रहे हैं, तब भी हमें फूल देती है, फल देती है, खनिज, अन्न सब तो देती है। हमारे माता पिता, जिहोने हमें इतने प्यार से पाल पोस कर बड़ा किया है, क्या वो भूल सकता है कोई? हमारा परिवार, हमारे दोस्त सब जो हमको गिरते ही संभालने आ जाते है, प्यार ही तो करते हैं हमसे। 

हाँ, मानती हूँ की उस उल्फत की जगह कुछ ख़ास होती है दिल में, पर प्यार तो अब भी है हमारी ज़िन्दगी में। बल्कि, मैं तो कहती हूँ कि ज़िन्दगी प्यार के रंगों से रंगी हुयी एक तस्वीर है। हमारा कर्तव्य है की हम जो प्यार इस जहाँ से हासिल करते हैं, वो प्यार इस दुनिया को, उन सबको वापिस उतनी ही शिद्दत से दें। प्यार के इस लेन- देन के बीच कभी तो वो पल भी आएगा जब हमको वो मुहब्बत  हासिल होगी जो हमें मुक्कमल बना दे। पर तब तक, प्यार का ये उत्सव मनाते रहो!

Saturday, February 9, 2013

फूल का सवाल



खिला है जो आज,कल वो भी
 मुरझा के झर जायेगा,
उसकी कोमल सी पंखुड़ियां
तिनका तिनका बिखर जायेंगी,              
हवा में न रहेगी उसकी भीनी सी
वो खुशबू , धूल संग कुचला जाएगा।

शायद बाकी रहें कुछ तसवीरें
या शायद किसी किताब के
पन्नों में बस जाए उसकी महक,
पर पूछे कुसुम सवाल ये ,
कि ओ माली, जब इसी मिटटी
में था मिलाना, तो क्यों दिया
ये रूप, क्यों दी सुगंध, जब
दो पल में सब है छीनना ?

मुस्कुराते माली ने कहा की अरे
पगले, यही तो नियम है, खिलकर
 मुरझाना, हाँ, यही तेरी नियति भी।                            
सवाल जो तूने पूछा है, तो जवाब भी सुन।
अपने दो पलों में तू इसी रूप, इसी
खुशबू से, दुनिया को खूबसूरत बनाता है,
उदास चेहरों पे मुस्कानें लाता है,
यही दो पल हैं तेरे पास पर तू यादें
बनकर जिए जाता है।

खिल तू कुछ इस तरह कि
दूर दूर तक फैले तेरी खुशबू,
खिल कुछ इस तरह कि नए
खिलते फूलों को तुझसे सीख मिले,
फिर मिटकर भी तू रहेगा अमर।