Friday, November 29, 2013

मिठास



आठ साल की थी झिलमिल. दीपावली का दिन था, अपने छोटी छोटी सी कलाइयों में चूड़ियाँ पहन रही थी वो. अपने रूप को दर्पण में निहार निहार कर खुश हो रही थी. सोच रही थी, अभी तैयार होकर बाहर निकलूंगी तो भैया बोलेंगे कि देखो आ गयी हमारी छोटी सी प्यारी सी राजकुमारी. हाँ, राजकुमारी, परी, शहज़ादी,भैया तो ऐसे ही नामों से उसको पुकारते थे न. और फिर आज तो उसका जन्मदिन भी था. आठ साल पहले ऐसे ही एक दीपावली के दिन पैदा हुयी थी वो. माँ ने उसकी नन्ही सी आखों में झिलमिलाते हुए दीपकों की  रौशनी को देखकर उसका नाम ही झिलमिल रख दिया था.  आज खूब मिठाई खाऊँगी, कोई मना भी नहीं कर पायेगा, सालगिरह जो है मेरी.

आठ साल बाद........

झिलमिल चुपके चुपके बैठी जलेबियाँ खा रही थी. मिठाई उसको इतनी पसंद थी, कि उसका मन ही नहीं भरता था कभी मीठा खाने से. मिठाई चोर के नाम से बदनाम हो गयी थी आस पड़ोस में. सब के सब त्यौहार पे उस से मिठाई छुपा कर रखते थे. वो कहती थी कि देखो कान्हा माखन चुराते थे, मैं अगर थोड़ी सी मिठास इस दुनिया से चुरा लूं तो क्या हो जायेगा? भैया कहते थे कि इतनी मिठास अपने अन्दर घोली हुए है उसने कि जब बोलती है तो भी मिश्री भरी बातें ही कहती है. अब खैर, भैया तो वैसे भी उस पर जान छिड़कते थे.  तभी अचानक उसने देखा कि पड़ोस वाले काका ने उसको जलेबी चोरी से खाते हुए देख लिया है. वो तुरंत बोली कि काका मैं माँ को बोलूंगी वो आपको पैसे दे देंगी इस मिठाई के. पर काका तो बड़े प्यार से मुस्कुरा के बोले कि अरे नहीं तुझे मिठाई पसंद है तो तू और खा, मैं देता हूँ. फिर वो अन्दर से रबड़ी लेकर आ गए.  अब तक झिलमिल ने ऐसी ख़ुशी, ऐसी मिठास के बारे में बस सुना था कि जिसको खाने से ख़ुशी के मारे बेहोशी हो जाती है. उसकी भी पलकें बंद होने लगीं.

जब पलकें खुली तो दर्द का एहसास हुआ, वो उठी, तो खून से चादर लाल थी, जब उसे समझ आया कि क्या हुआ है, तो उसकी आखों में झिलमिलाने वाली रौशनी बुझ गयी, एक ऐसी बाढ़ आई आंसुओं की. वो रोते रोते कह रही थी कि झूठ बोलते हैं वो जो कहते हैं कि नीम के पत्ते को शहद में डुबोने पर भी वो कड़वा ही रहता है. मिठास के पीछे छुपे ज़हर को नहीं पहचान पाई वो, जिसको रबड़ी के साथ खा लिया था. सच,  मिठास ने छला  था आज उसको.
फिर हर दीपावली को भैयया सोचते थे कि मेरी परी ने मिठाई को हाथ भी नहीं लगाया?