लैला- मजनू , शीरी- फरहाद, रोमिओ -जुलिएट जैसी कहानियों से प्रेरित होकर ..........

सर्दी की दोपहर सा
सर्दी की दोपहर सा
गुनगुना सा एहसास
ओढ़ा जाती है
तुमसे हुयी हर मुलाक़ात
कितना प्यारा है ये
रिश्ता मेरा तुम्हारा
कि बस पलकों का पर्दा
हटाकर पढ़ लें हम
मन में छिपे हों जो जज़्बात
गीत तुम्हारा ,आवाज़ मेरी है
रंग तुम्हारे , कला मेरी है
सच ही तो कहते हैं सब
दो तन एक प्राण हों
नसीबों से मिलता है ऐसा साथ
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