ख़ुशी भी आज हमें
मिली है यूँ कि
गम का स्वाद जाता नहीं
इन राहों पे भीड़ है कितनी,
चिराग लेकर ढूंढें तब भी मगर
अपना एक चेहरा दीखता नहीं
इन बेगानों की संगत में
इक तनहा कोना खोजता है दिल बेचारा
आस हमारी टुकड़े टुकड़े बिखरी,
जलते ख्वाबों के धुएं में टटोलते हैं,
रास्ता गुम हो गया कहीं
ऐ मौला मेरे, क्या कभी इस
भूल भुलैया से मिलेगी आज़ादी
बिन पिंजरे हैं, मगर कैद हैं फिर भी
तेरे सजदे में हर दफा सर झुकाया हमने
इक छोटी सी ही तो आरज़ू थी हमारी
वो भी पूरी होकर है अब तक अधूरी
तिल तिल कर हरदम मरें बस यही
है क्या हमारी ज़िन्दगी?
बरस कितने ही बीते, मगर
विश्वास की लौ हमने बुझने न दी
अब भी भरोसे की बेड़ियां जकड़ती हैं
पर इंतज़ार की अब इंतेहा होने को है
बरकत की बारिशें दे खुदा, मेरे मौला,
मेरे रब, इस एक ख़ुशी के वास्ते बरसो तरसे हैं,
इस ज़माने में तनहा हम, इक तू ही तो है सहारा।
अँखियों से नदियां बहुत बहा चुके हम,
अब तो मुखड़े पे मुस्कान का आफताब खिला दे,
बस मदद दे खुदा, रहम कर, तो तेरा
धूम धाम से हम करें शुक्रिया अदा.
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